Breaking! Madhan Bob Alive or Not – कभी-कभी कुछ चेहरे और उनकी हंसी दिल में ऐसे बस जाते हैं कि उन्हें भूलना मुश्किल हो जाता है। मदन बॉब, जिनका असली नाम एस. कृष्णमूर्ति था, तमिल सिनेमा के ऐसे ही एक अनमोल रत्न थे। उनकी खनकती हंसी, चमकती आंखें और हर सीन में हल्का-सा जादू बिखेरने की कला ने लाखों लोगों को हंसाया और रुलाया। लेकिन हाल ही में सोशल मीडिया पर एक सवाल ने सबको चौंका दिया—मदन बॉब जिंदा हैं या नहीं? यह सुनकर दिल धक्क से रह गया। 2 अगस्त 2025 को, 71 साल की उम्र में, मदन बॉब ने चेन्नई के अडयार में अपने घर पर आखिरी सांस ली। यह खबर सुनकर मेरी आंखें नम हो गईं, क्योंकि उनकी हंसी मेरे बचपन की तमिल फिल्मों की यादों का हिस्सा थी। यह लेख उनकी जिंदगी, उनके हास्य, और तमिल सिनेमा में उनके योगदान को आम आदमी की भाषा में बयां करता है, ताकि आप भी उनकी कहानी को अपने दिल से महसूस करें।
एक साधारण लड़का, जो बन गया सितारा
मदन बॉब का जन्म 19 अक्टूबर 1953 को चेन्नई में एक बंगाली परिवार में हुआ था। वह अपने घर में आठवें बच्चे थे, और इसलिए उनका नाम कृष्णमूर्ति रखा गया। लेकिन घर में दो कृष्णमूर्ति होने की वजह से उन्हें ‘मदन’ बुलाया जाने लगा। उनके भाई का नाम पद्मनाभन था, जिसे प्यार से ‘बाबू’ बुलाते थे। दोनों भाइयों ने मिलकर ‘मदन और बाबू’ नाम से एक म्यूजिक ग्रुप बनाया। बाद में मशहूर निर्देशक के. बालाचंदर ने बाबू को ‘बॉब’ बना दिया, और इस तरह ‘मदन बॉब’ तमिल सिनेमा का एक जाना-पहचाना नाम बन गया।
मुझे याद है, मेरे चचेरे भाई, जो चेन्नई में रहते हैं, हमेशा तमिल फिल्मों की बात करते थे। एक बार उन्होंने बताया कि मदन बॉब की हंसी सुनकर लगता था जैसे कोई पुराना दोस्त पास बैठा हो। उनका बचपन त्रिप्लिकेन की गलियों में बीता, और बाद में उनका परिवार अडयार में बस गया। संगीत उनका पहला प्यार था। छोटी उम्र में ही उन्होंने गिटार सीख लिया और अपनी ऑर्केस्ट्रा बनाई। क्या आप यकीन करेंगे कि वह मशहूर संगीतकार ए.आर. रहमान और एम.एम. कीरावनी के पहले गुरु थे? यह सुनकर मुझे गर्व हुआ कि एक साधारण इंसान इतना बड़ा प्रभाव छोड़ सकता है।
सिनेमा की दुनिया में पहला कदम

मदन बॉब ने 1984 में बालू महेंद्रा की फिल्म ‘नींगल केट्टवई’ से सिनेमा में कदम रखा। लेकिन असली पहचान उन्हें 1992 में के. बालाचंदर की ‘वानमे एलाई’ से मिली। इस फिल्म में उनकी हंसी और चेहरे के हावभाव ने दर्शकों का दिल जीत लिया। मेरे एक दोस्त ने, जो तमिल सिनेमा का दीवाना है, बताया कि ‘वानमे एलाई’ में उनका छोटा-सा रोल इतना मजेदार था कि लोग थिएटर में हंसते-हंसते लोटपोट हो गए।
उनकी प्रेरणा मशहूर हास्य अभिनेता काका राधाकृष्णन थे, जिनकी तरह मदन बॉब भी अपनी आंखों और हंसी से जादू बिखेरते थे। ‘देवर मगन’, ‘पोवे उनक्कागा’, ‘थेनाली’, और ‘फ्रेंड्स’ जैसी फिल्मों में उनके किरदार छोटे थे, लेकिन इतने यादगार कि लोग आज भी उन्हें देखकर मुस्कुराते हैं। ‘थेनाली’ में डायमंड बाबू का उनका रोल मुझे आज भी हंसाता है—वह सीन जहां वह कमल हासन के साथ मजाक करते हैं, बार-बार देखने लायक है।
टीवी पर हंसी का जादू
मदन बॉब सिर्फ सिनेमाघरों तक सीमित नहीं रहे। सन टीवी के कॉमेडी शो ‘असाथापोवधु यारु’ में वह बतौर जज नजर आए। उनकी हंसी और मजेदार कमेंट्स ने शो को और भी खास बना दिया। मेरी एक सहेली, जो चेन्नई में रहती है, कहती थी कि वह इस शो को सिर्फ मदन बॉब की हंसी के लिए देखती थी। वह कहती थी, “उनकी हंसी में एक ऐसी गर्मजोशी थी, जो घर को खुशियों से भर देती थी।”
उन्होंने कई टीवी सीरियल्स में भी काम किया और दो मलयालम फिल्मों और कमल हासन की हिंदी फिल्म ‘चाची 420’ में भी अपनी छाप छोड़ी। भले ही उनके रोल छोटे हों, लेकिन उनकी मौजूदगी हर सीन को चमका देती थी। ‘पम्मल के. संबंदम’ में उनका किरदार हो या ‘वसूल राजा एमबीबीएस’ में छोटा-सा रोल, हर जगह उन्होंने दर्शकों को हंसाया।
निजी जीवन: एक जिंदादिल इंसान

मदन बॉब का निजी जीवन उनकी हंसी की तरह ही रंगीन था। उनकी शादी सुशीला से हुई थी, और उनके दो बच्चे थे। संगीत उनके लिए जिंदगी का हिस्सा था। वह न सिर्फ संगीत सिखाते थे, बल्कि कॉन्सर्ट्स का आयोजन भी करते थे, जिनमें एस.पी. बालासुब्रमण्यम जैसे बड़े गायक शामिल हुए।
क्या आप जानते हैं कि वह एक हेवीवेट बॉक्सर भी थे? उनकी फिटनेस और हिम्मत की कहानियां भी कमाल की हैं। ‘मप्पिल्लई’ की शूटिंग के दौरान उनकी गाड़ी पलट गई थी। उस हादसे में उन्होंने न सिर्फ खुद को बचाया, बल्कि ड्राइवर और अपने असिस्टेंट की जान भी बचाई। अस्पताल से लौटने के बाद वह फिर शूटिंग पर लौटे। यह उनकी जिंदादिली और हौसले की मिसाल है।
निर्देशक पी. वासु ने उन्हें अपना प्यारा दोस्त बताया और कहा, “मदन बॉब की हंसी ऐसी थी, जो सेट पर सबको जोड़ देती थी।” प्रभुदेवा ने भी उनकी मौत पर दुख जताते हुए कहा कि उनकी मौजूदगी हर किसी को खुशी देती थी। यह सुनकर मुझे एहसास हुआ कि वह न सिर्फ एक कलाकार, बल्कि एक सच्चा इंसान थे।
कैंसर से लड़ाई और अंतिम पल
मदन बॉब कई सालों से कैंसर से जूझ रहे थे। कुछ समय पहले खबर आई थी कि वह इलाज के बाद ठीक हो रहे हैं। लेकिन 2 अगस्त 2025 को, शाम 5 बजे, उन्होंने चेन्नई के अडयार में अपने घर पर आखिरी सांस ली।
उनकी आखिरी फिल्म ‘मार्केट राजा एमबीबीएस‘ थी, जो 2019 में रिलीज हुई थी। उनकी मौत की खबर ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी। लोग उनकी पुरानी फिल्मों के सीन और तस्वीरें शेयर कर रहे हैं, जिसमें उनकी हंसी की गूंज साफ सुनाई देती है।
तमिल सिनेमा में योगदान: एक अनमोल विरासत
मदन बॉब ने करीब 200 तमिल फिल्मों में काम किया। ‘चंद्रमुखी’, ‘कावलन’, और ‘रन’ जैसी फिल्मों में उनके छोटे-छोटे किरदारों ने भी दर्शकों का दिल जीता। वह कभी लीड रोल में नजर नहीं आए, लेकिन उनकी हंसी और अभिनय ने हर सीन को खास बना दिया। निर्देशक पी. रंजीत ने कहा कि अगर उन्हें पता होता कि मदन बॉब एक हेवीवेट बॉक्सर थे, तो वह उन्हें अपनी फिल्म ‘सर्पट्टा परंबरई’ में जरूर लेते। यह उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है।
Madhan Bob Alive or Not

मदन बॉब अब भले ही हमारे बीच न हों, लेकिन उनकी हंसी और उनके किरदार हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे। तमिल सिनेमा में उनकी 40 साल की यात्रा एक ऐसी कहानी है, जो हर उस इंसान को प्रेरित करती है, जो अपने जुनून को जीना चाहता है। उनकी हंसी सुनकर मेरे बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं, जब मैं अपने परिवार के साथ उनकी फिल्में देखता था। अगर आप उनकी हंसी को फिर से महसूस करना चाहते हैं, तो ‘थेनाली’ या ‘फ्रेंड्स’ देखें और उनकी जिंदादिली को सलाम करें। मदन बॉब, आपकी हंसी हमेशा हमारी यादों में गूंजेगी।
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